Palak ki kheti kaise kare:– हमारे देश की तरक्की में किसानों का बहुत बड़ा योगदान माना जाता है। इसीलिए किसानों की आमदनी को बढ़ाने के लिए उन्हें यह जानना बहुत ही आवश्यक है, कि कौन सी फसल को उपजाए जो उनको अच्छी आमदनी दे सकती है, और उनकी कब बुवाई तथा कटाई की जाए।
आज हम आपको पालक की खेती के बारे में जानकारी देंगे जिससे आप कम लागत में भी ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। पालक को एक सदाबहार सब्जी के रूप में जाना जाता है। जो पूरे विश्व में इसकी खेती की जाती है। किसान भाई पालक की पत्तियों और बीजों को बेचकर पालक की खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं तो चलिए अब हम इसके बुआई से लेकर कटाई तक कि पूरी जानकारी जानते हैं। Palak ki kheti kaise kare
पालक की खेती करने के लिए आवश्यक जलवायु और तापमान—
पालक की खेती करने के लिए सर्दियों का मौसम उपयुक्त माना जाता है। क्योंकि सर्दियों के मौसम में गिरने वाले कड़ाके की ठंड को पालक के पौधे आसानी से सहन कर लेते हैं, और वह अच्छे से विकास भी कर लेते हैं। पालक की खेती करने के लिए हमे बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। Palak ki kheti kaise kare
Palak ki kheti kaise kare
क्योंकि जलभराव वाले भूमि पर इसकी खेती करना उपयुक्त नहीं माना जाता है। पालक की खेती करने के लिए इसकी भूमि की पीएच मान 6 से 7 के मध्य होनी चाहिए। जिससे पालक के पौधे खुद को अच्छी तरह से विकसित कर सके।
यदि हम इस पौधों के लिए तापमान की बात करें तो यह सामान्य तापमान में अच्छे से विकास करते हैं तथा पौधों को अंकुरण करने के लिए सामान्यता 20 डिग्री तापमान के आवश्यकता होती है। यह पौधे अधिकतम 30 डिग्री और न्यूनतम 5 डिग्री तक के तापमान को आसानी के साथ सहन कर सकते हैं।
पालक की उन्नत किस्में—
पालक की उन्नत किस्में निम्नलिखित प्रकार के होते हैं। जैसे:-
1. पूसा ज्योति किस्म की पालक
2. ऑल ग्रीन किस्म की पालक
3. आर्क अनुपमा किस्म की पालक
4. जोबेरेन ग्रीन किस्म की पालक
पूसा ज्योति किस्म के पालक—
पूसा ज्योति किस्में की पालक 40 से 45 दिनों के अंदर अपनी पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है। इस पालक की किस्मे पर निकलने वाली पत्तियां लंबी चौड़ी और गहरे रंग की होती है, तथा इसके पौधे की तैयार होने पर इसकी कटाई 8 से 10 बार की जा सकती है।
यह एक पालक के अधिक पैदावार देने वाले किस्मों में से एक है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 45 टन तक के पैदावार देने की क्षमता रखती है, तथा इस पालक को आगे और पीछे दोनों की पैदावार देने के लिए उगाया जाता है।
ग्रीन किस्म के पालक—
ऑल ग्रीन किस्में की पालक को तैयार करने में 35 से 40 दिनों का समय लगता है। इसके पतियों की आकार चौड़ा मुलायम तथा हरा होती है। पालक के इस किस्म के पैदावार सर्दियों के मौसम में की जाती है। तथा इसके पौधे की कटाई 5 से 7 बार तक किया जा सकता है। Palak ki kheti kaise kare
आर्क अनुपमा किस्म की पालक—
आर्क अनुपमा किस्म के पालक अपनी पैदावार देने के लिए 40 दिनों के अंदर तैयार हो जाती है। इस किस्म में लगने वाले पौधों में पत्तियों की आकार बड़ी चौड़े और देखने में गहरे हरे रंग की होती है। पालक की इस किस्म को [ आईआईएचआर -10 और आईआईएचआर – 8 ] का संस्करण कर तैयार किया गया है। इस पालक को प्रति हेक्टेयर 10 टन पैदावार करने की क्षमता होती है।
जोबेरेन ग्रीन किस्म कि पालक—
जोबेरेन ग्रीन किस्म कि पालक को उगाने के लिए हल्की सारी भूमि की आवश्यकता होती है इस किस्म की पालक को 40 दिनों के अंदर अपनी पैदावार देने के लिए तैयार हो जाती है।
इस पालक की पौध मैं निकलने वाली पत्तियां आकार में लंबे चौड़े तथा गहरे हरे रंग की होती है, और यह किस्म प्रति हेक्टेयर 30 टन अपनी पैदावार देने की क्षमता रखती है। इसके अतिरिक्त पालक के कई और भी किस्मे तैयार किया गया है जिसे अलग-अलग स्थानों पर अधिक समय तक कटाई और पैदावार के लिए उगाया जाता है।
पालक फसल के लिए खेतों को तैयार करना—
1. पालक के उन्नत किस्में और उसके अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए आपकि खेतों की मिट्टी को भुर भुरा होना आवश्यक होता है। इसके लिए हमें पहले से ही खेतों की जुताई करके उसके पुराने अवशेष पदार्थों को नष्ट कर देना चाहिए। Palak ki kheti kaise kare
2. खेतों की जुताई के पश्चात उसे कुछ समय के लिए ऐसे ही छोड़ देना चाहिए जिससे खेत की मिट्टी को अच्छी तरह से धूप लग जाए। खेतों की जुताई करने के पश्चात उसमें उर्वरक की पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए।
3. क्योंकि पालक की फसल की कटाई कई बार किया जाता है इसीलिए उसके पौधों की अधिक उर्वरक की आवश्यकता होती है। उर्वरक देने के लिए हम प्रति हेक्टेयर 16 से 17 गाड़ी पुराने गोवर का इस्तेमाल कर सकते हैं।
4. खाद को मिट्टी अच्छी तरह से मिलाने के लिए हमें रोटावेटर लगाकर 2 से तीन बार तिरछी जुताई कर देनी चाहिए। खाद्य मे मिट्टी को अच्छी तरह से मिलाने के बाद उसे पाटा लगाकर बरोबर कर दे। Palak ki kheti kaise kare
5. जब उस खेत के ऊपरी सतह सुख जाए तो फिर से उस खेत की जुताई कर दे ताकि खेत की मिट्टी पूरी तरह से भुर-भुरा बन जाए। पालक के खेत को तैयार करते समय उसे पाटा लगाकर समतल कर दिया जाए ताकि खेत में जलभराव की समस्या नही हो।
6. इसके बाद खेतो मे रासायनिक खाद के रूप में 40 किलो पोटाश 40 किलो फास्फोरस और 30 किलो नाइट्रोजन की मात्रा को मिलाकर खेत की आखिरी जुताई के समय खेतों में छिड़काव कर उसे मिट्टी के साथ मिला दिया जाए, तथा पौधों की कटाई के समय लगभग 20 किलो यूरिया खेतों में छिड़काव करें। जिससे पौधे में तेजी से विकास होता है और वह कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
पालक के बीजों की रोपाई का सही समय और तरीका
1. पालक के बीच को भारत के सभी क्षेत्रों में सालों भर उगाया जाता है। लेकिन इसकी रोपाई के लिए अक्टूबर और नवंबर माह सबसे उपयुक्त माना जाता है। पालक के बीजों की रोपाई कई तरीकों से किया जाता है।
2. पहला रोपाई विधि द्वारा और दूसरा छिड़काव विधि द्वारा, रोपाई विधि द्वारा पालक के बीजों को खेतों में मेड़ों पर रोपाई की जाती है। जबकि छिड़काव विधि द्वारा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 30 से 35 किलो पालक के बीच की आवश्यकता होती है।
3. पालक के बीच को खेतों में रोपाई करने से पहले उन्हें कीटनाशक दवा के द्वारा उपचारित कर लेना चाहिए इसके अतिरिक्त गोमूत्र में भी 2 से 3 घंटे तक भिगोकर बीजों का उपचार किया जा सकता है।
4. रोपाई विधि द्वारा बीजों को खेतों में रोपाई करने के लिए खेतों में मेडो और क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है| बीजों की रोपाई करते समय इस के मध्य की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर और जमीन के अंदर इसे 2 से 3 सेंटीमीटर तक बुवाई करनी चाहिए।
5. जिससे हमारे बीच अच्छी तरह से अंकुरित हो सके, इसके अलावा छिड़काव विधि द्वारा खेतों की क्यारियों को तैयार कर उसमें बीजों को छिड़काव कर दिया जाता है और इसके बाद पाटा के मदद से बीजों को खेतों के अंदर दबा दिया जाता है।
पालक पौधों की सिंचाई—
पालक कि पौधे में अच्छी वृद्धि के लिए उन्हें अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है। क्योंकि इसके बीजों की रोपाई के लिए भूमि को नमी होना आवश्यक होता है। इसीलिए बीजो कि रोपाई के तुरंत बाद उसे पानी दे देना चाहिए परंतु छिड़काव विधि में इसके बीजों के सूखी भूमि की आवश्यकता होती है।
पालक के बीजों की सिंचाई आरंभ के समय 5 से 7 दिनों के अंतराल पर करते रहना चाहिए। जिससे बीजों के अंकुरण अच्छी तरीके से हो जाता है। वहीं गर्मियों के मौसम में इसे. 2 से 3 दिन बाद और सर्दियों के मौसम में से 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करने कि आवश्यकता होती है। Palak ki kheti kaise kare
पालक पौधे में खरपतवार पर नियंत्रण—
पालक के पौधे पर खरपतवार का नियंत्रण करना काफी आवश्यक होता है। खरपतवार के कारण इसके पौधे में कीट लगने की संभावना अधिक हद तक बढ़ जाता है। जिससे इसके पैदावार प्रभावित होता है। पालक की फसल पर खरपतवार के नियंत्रण के लिए प्राकृतिक या रासायनिक विधि का इस्तेमाल कर सकते हैं।
रासायनिक विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण पाने के लिए कीटनाशक दवाइयों की उचित मात्रा में छिड़काव खेतों में बीज की रोपाई के तुरंत बाद कर देनी चाहिए, और प्रकृतिक विधि द्वारा खरपतवार पर नियंत्रण के लिए पौधे की निराई गुड़ाई की जाती है। पौधे की पहली गुडाई बीज की रोपाई के 12 से 15 दिन बाद किया जाना चाहिए इसके बाद समय-समय पर खेत में पौधे के बीच में खरपतवार दिखाई देने पर उनकी गुड़ाई करना चाहिए।
पालक के पौधे में लगने वाले रोग और उसके रोकथाम—
1. चेपा किट रोग—
इस तरह का रोग अक्सर गर्मियों के मौसम में देखने को मिलता है| चेपा रोग का किट अक्सर पौधे की पतियों का रस चुसकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देता है। जिसके कारण इस रोग से प्रभावित पौधे की पत्तियां पीले रंग की दिखाई देने लगती है, और कुछ ही समय के बाद वह पौधे से टूट कर गिर जाती है। यह रोग पौधे में पैदावार को अधिक प्रभावित करता है। इसके लिए मेलाथियान की उचित मात्रा में घोल बनाकर पौधे पर छिड़काव करने से इस रोग से बचाव किया जा सकता है।
2. लीफ माइनर रोग—
यह रोग पर्ण सुरंगक रोग के नाम से भी जाने जाते हैं| यह रोग पौधो मे पतियों को अधिक हीनी पहुंचाता है। इस रोग से प्रभावित होने पर पौधे की पत्तियों मे पारदर्शी नालीनुमा और सफेद भूरे रंग की धारियां दिखाई देने लगती है।
जिससे पौधे की पतियों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल पाता है, और पौधे की वृद्धि पूरी तरह से रुक जाती है। जिससे हमारे किसान भाई को पैदावार भी कम प्राप्त होती है। इसीलिए इस पौधे पर डायमेथोएट या फिर एन्डोसल्फान कि सिमित मात्रा में छिड़काव करने से इस रोग से वचाव किया जा सकता है। Palak ki kheti kaise kare
3. बालदार सुंडी रोग—
पालक के पौधो पर लगने वाला यह रोग बारिश के समय में पौधों पर आक्रमण करता है| बालदार रोग की सुंडी लाल पीले और काले रंग में दिखाएं देता है| यह रोग पौधे की पत्तियों को खाकर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देता है। जिससे पालक की पैदावार और उसकि गुणवत्ता काफी प्रभावित होती है।
इस तरह के रोगों से बचाव करने के लिए पालक के पौधों पर तेल या फिर सर्फ के घोल को उचित मात्रा में छिड़काव किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त एंडोसल्फान कीटनाशक उचित मात्रा में पौधों पर छिड़काव कर रसायनिक तरीके से इस रोग को रोकथाम किया जा सकता है।
4. पत्ती धब्बा रोग—
यह एक तरफ से फफूंदी जनित रोग होता है जो पौधे की पत्तियों पर धब्बे के रूप में दिखाई देता है। पति धब्बा रोग पौधे की पत्तियों पर आक्रमण कर उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर देता है। अतः इस रोग से बचाव करने के लिए बलाईटाक्स के घोल का छिड़काव कर पौधे की पत्तियों को सुरक्षित किया जा सकता है। Palak ki kheti kaise kare
पालक फसल की कटाई और कमाई—
पालक के पौधे की पहली कटाई उसके बीज रोपाई के 30 से 40 दिन बाद कर लेनी चाहिए। इस दौरान पालक के पौधे अपनी पैदावार को देने के लिए तैयार हो जाते हैं। जब पालक की प्रतियां पूर्ण रूप से विकसित हो चुकी होती है तो इसकी पतियों को भूमि से कुछ ऊपर किसी धारदार हथियार द्वारा काट लेना चाहिए।
पालक के पौधे की कटाई 6 से 7 बार की जाती है| उसके बाद काटी गई पतियों को साफ पानी से धोकर रस्सी के माध्यम से एक बंडल तैयार किया जाता है उसके बाद इसे बाजारों में बेचने के लिए तैयार कर दिया जाता है।
पालक के पौधे से उसके बीजों को प्राप्त करने के लिए उसे 3 से 4 बार कटाई करने के बाद कुछ समय के लिए छोड़ दिया जाता है, और जब पौधे पर बीज दिखाई देने लगे तब उनकी कटाई कर उन्हें अलग कर लेना चाहिए, और फिर उसके बीजों को सुखाकर मशीनी उपकरण द्वारा अलग कर दिया जाता है| इसके बाद उन बीजों को पैकिंग कर बाजारों में बेचने के लिए भेज दिया जाता है।
पालक की 5 से 6 बार कटाई करने पर 25 टन की पैदावार प्राप्त हो जाती है वही पालक के बीज दाने के रूप में 10 क्विंटल तक प्राप्त हो जाते हैं। पालक की बाजार में रेट 5 से ₹10 प्रति किलो होता है। जिससे किसान इसे बेचकर लाखों रुपए आसानी से कमा सकते हैं। Palak ki kheti kaise kare
निष्कर्ष :- हम आशा करते हैं कि आप हमारे द्वारा दी गई आर्टिकल के माध्यम से इस जानकारी को पढ़कर पालक की खेती के बारे में अच्छी तरह से समझ गए होंगे। यदि इससे जुड़े आपके मन में कोई भी सवाल हो तो आप कमेंट बॉक्स में जाकर पूछ सकते हैं।
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